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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋचा दीपक कर्पे
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
आज धूप सेंकते हुए
मैंने देखा,
रंग-बिरंगे फूल
एकटक देख रहे थे
दूर उड़ती बादलों की टुकड़ियों को
शायद देना चाहते थे कोई संदेश
अपनी छोटी-छोटी आँखों से
मनचले भँवरे
न जाने क्या कह रहे थे
तितलियों से!
कुछ पंछी भी थे वहाँ
जो सुन रहे थे
उनका मौन संवाद
अचानक,
फूलों का संदेश पाकर
बादलों ने छिपा लिया सूरज को
भँवरे का गीत सुनकर
तितलियाँ मंडराने लगी मस्ती में
पंछियों ने अपने पंख फड़फड़ाए
फूल थोड़ा और खिल गया!
मैंने सोचा,
कितने शब्द गंवा देते हैं
हम यूँ ही निरर्थक...
सीखना चाहिए प्रकृति की
इन सुंदरतम कृतियों से
संवाद मौन का!
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
आज धूप सेंकते हुए
मैंने देखा,
रंग-बिरंगे फूल
एकटक देख रहे थे
दूर उड़ती बादलों की टुकड़ियों को
शायद देना चाहते थे कोई संदेश
अपनी छोटी-छोटी आँखों से
मनचले भँवरे
न जाने क्या कह रहे थे
तितलियों से!
कुछ पंछी भी थे वहाँ
जो सुन रहे थे
उनका मौन संवाद
अचानक,
फूलों का संदेश पाकर
बादलों ने छिपा लिया सूरज को
भँवरे का गीत सुनकर
तितलियाँ मंडराने लगी मस्ती में
पंछियों ने अपने पंख फड़फड़ाए
फूल थोड़ा और खिल गया!
मैंने सोचा,
कितने शब्द गंवा देते हैं
हम यूँ ही निरर्थक...
सीखना चाहिए प्रकृति की
इन सुंदरतम कृतियों से
संवाद मौन का!
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