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Kavita Kosh से
Added हूई
उसी छांव के सहारे पलती बढती
जाने कब हुयी हूई घने वृक्ष जैसी बड़ी मैं
पता नहीं बीते कितने बरस
भूल गए क्षण, सारे के सारे, पुराने पल
इस क्षण ऊंचे लोहे के जालीदार गेट को देख