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फागण / दिनेश शर्मा

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फागण का सै मस्त महीना
बख्त यूं मौज उड़ावण नै
रल्लमिल कठे होल्यो सारे
बीती बात भुलावण नै

चालण मैं सै परेसानी
पर रंगा लगा इतरावैंगे
सैं दादा दादी बी तैयार
ये फागण मैं मस्तावैंगे
सामण मैं सूखा गदरावै
जणूं चाल्या फाग मनावण नै
फागण का सै।

पिछले साल रही कसर
इबकै कमर कस री सै
देखिए कित रहग्या काका
आड़ै ताई बाट देख री सै
हाथ कोरडा ले कै करड़ा
सारी अकड़ मिटावण नै
फागण का सै।

आस-पड़ोस सब नै कर ली
होली खेलण की तैयारी
देवर अर भाभियाँ नै मिल
भरली पाणी की क्यारी
नई बहू नै देवर सूटया
था आया रंग लगावण नै
फागण का सै।

सारे बाल्लक फिरै गाल्ल मै
कति होए रेल म पेल
गुलाल हाथां मैं ले राख्या
भरी पिचकारी बी गेल
बख्त बदलग्या ढंग बदलगे
दिनेश फिरै रीत निभावण नै
फागण का सै।
</poem>
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