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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
तय है गर्दन भले क़लम होगी।
अपनी दस्तार ये न ख़म होगी।

मुन्तजिर हूँ ये सोचकर अब तक,
उनके वादे में कुछ तो दम होगी।

याद हैं मुझको वह सभी शर्तें,
याद उनको भी वह क़सम होगी।

सच ये दिल में कभी न सोचा था,
जिन्दगी इतनी बेरहम होगी।

बाद बरसों भले मिलो लेकिन,
ये मुहब्बत कभी न कम होगी।

दोस्तों याद जब भी आऊँगा,
दुश्मनों की भी आँख नम होगी।

ख्वाब देखा तलक न था ‘विश्वास’,
इश्क की उम्र इतनी कम होगी।
</poem>
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