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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
महफिल में उठ चुका है ये मसला कई दफे।
वादों से उनके दिल मेरा बहला कई दफे।

जिसने बनाई पत्थरों को तोड़कर डगर,
चिकनी ज़मीन पर वही फिसला कई दफे।

चर्चे हमारी तेग के बस्ती में थे बहुत,
फिर भी हुआ है घेरकर हमला कई दफे।

अपने ही दम पर जीतकर आये हैं जंग आप,
बोला ग़लत ये आपने जुमला कई दफे।

हमको पता है ये डगर जाती कहाँ को है,
गु़जरे हैं इस शहर से हम किबला कई दफे।

घर में पनाह माँगने आया है वह ज़रूर,
मारा हुआ नसीब का पगला कई दफे।

उसके ही दोस्त ने किया धोखे़ से क़त्ल जब,
कटने के बाद उसका सर उछला कई दफे।

कायम रहा उसूल पर अपना ये दिल मगर,
‘विश्वास’ उनको देखकर मचला कई दफे।
</poem>
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