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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
गाँव की हलचल पिता जी थे।
हर दुखी का बल पिता जी थे।

वो धनी थे बात के अपनी,
शुद्ध गंगाजल पिता जी थे।

ज्ंाग की खातिर ज़माने से,
एक पूरा दल पिता जी थे।

हद में रहते थे समुन्दर सब,
ऐसे बड़वानल पिता जी थे।

हर ज़हर था बेअसर उन पर,
दर असल संदल पिता जी थे।

जिन्दगी की हर पहेली का,
इक मुकम्मल हल पिता जी थे।

पिछले जन्मों में किये ‘विश्वास’,
कर्म के शुभ फल पिता जी थे।
</poem>
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