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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
लोग बेचैन हैं, बेकल हैं, ख़ुदा खैर करे।
गुम सवालों के हुये हल हैं ख़ुदा खैर करे।
जुगनुओं के भी चमकने पर लगा दी बन्दिश,
चौमुहानी के दिये गुल हैं ख़ुदा खैर करे।
अम्न को मुल्क में ले आने का वादा करके,
आप जिस राह पड़े चल हैं ख़ुदा खैर करे।
इस ज़माने की सियासत भी ग़ज़ब की है मियाँ,
एक ही दल में कई दल हैं ख़ुदा खैर करे।
ख़त है दुश्वार ये ‘विश्वास’ सुनाना पढ़कर,
मिट रहे हर्ष ये पलपल हैं खु़दा ख़ैर करे।
</poem>
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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
लोग बेचैन हैं, बेकल हैं, ख़ुदा खैर करे।
गुम सवालों के हुये हल हैं ख़ुदा खैर करे।
जुगनुओं के भी चमकने पर लगा दी बन्दिश,
चौमुहानी के दिये गुल हैं ख़ुदा खैर करे।
अम्न को मुल्क में ले आने का वादा करके,
आप जिस राह पड़े चल हैं ख़ुदा खैर करे।
इस ज़माने की सियासत भी ग़ज़ब की है मियाँ,
एक ही दल में कई दल हैं ख़ुदा खैर करे।
ख़त है दुश्वार ये ‘विश्वास’ सुनाना पढ़कर,
मिट रहे हर्ष ये पलपल हैं खु़दा ख़ैर करे।
</poem>