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फ़लक से उतरे हसींन रिश्ते बने बनाये क़सम ख़ुदा की
मिले वो जब से हुये नदारद ग़मों के साये क़सम ख़ुदा की
चमक ये चेहरे की आइने में दिखे बदौलत उन्हीं के लिख दो
जो पाये लमहे ख़ुशी के जितने उन्हीं से पाये क़सम ख़ुदा की
चिराग़ जैसे हुये हैं रौशन दिये ज़माने के ज़ख़्म सारे
वहीं से मिसरे ग़ज़ल में अपनी उठा के लाये क़सम ख़ुदा की
बुने हैं अपने लिबास ख़ुद ही अभी हुनर है रवां हमारा
सनद है लिख दी नहीं ख़रीदे सिले सिलाये क़सम ख़ुदा की
बवक़्ते रुख़सत कहा था उसने उन्हें भी देना दुआयें दिल से
तमाम ज़ुल्मो सितम जिन्होंने हों तुम पे ढाये क़सम ख़ुदा की
न होने तौहीने इश्क़ दी है बला से कितनी हुई मज़म्मत
पता है फिर भी न हम मुहब्बत से बाज़ आये क़सम ख़ुदा की
नहीं गिला है न कोई शिकवा न और 'विश्वास' कोई चाहत
यही बहुत है वो मेरे इतने क़रीब आये क़सम ख़ुदा की
फ़लक से उतरे हसींन रिश्ते बने बनाये क़सम ख़ुदा की
मिले वो जब से हुये नदारद ग़मों के साये क़सम ख़ुदा की
चमक ये चेहरे की आइने में दिखे बदौलत उन्हीं के लिख दो
जो पाये लमहे ख़ुशी के जितने उन्हीं से पाये क़सम ख़ुदा की
चिराग़ जैसे हुये हैं रौशन दिये ज़माने के ज़ख़्म सारे
वहीं से मिसरे ग़ज़ल में अपनी उठा के लाये क़सम ख़ुदा की
बुने हैं अपने लिबास ख़ुद ही अभी हुनर है रवां हमारा
सनद है लिख दी नहीं ख़रीदे सिले सिलाये क़सम ख़ुदा की
बवक़्ते रुख़सत कहा था उसने उन्हें भी देना दुआयें दिल से
तमाम ज़ुल्मो सितम जिन्होंने हों तुम पे ढाये क़सम ख़ुदा की
न होने तौहीने इश्क़ दी है बला से कितनी हुई मज़म्मत
पता है फिर भी न हम मुहब्बत से बाज़ आये क़सम ख़ुदा की
नहीं गिला है न कोई शिकवा न और 'विश्वास' कोई चाहत
यही बहुत है वो मेरे इतने क़रीब आये क़सम ख़ुदा की
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फ़लक से उतरे हसींन रिश्ते बने बनाये क़सम ख़ुदा की
मिले वो जब से हुये नदारद ग़मों के साये क़सम ख़ुदा की
चमक ये चेहरे की आइने में दिखे बदौलत उन्हीं के लिख दो
जो पाये लमहे ख़ुशी के जितने उन्हीं से पाये क़सम ख़ुदा की
चिराग़ जैसे हुये हैं रौशन दिये ज़माने के ज़ख़्म सारे
वहीं से मिसरे ग़ज़ल में अपनी उठा के लाये क़सम ख़ुदा की
बुने हैं अपने लिबास ख़ुद ही अभी हुनर है रवां हमारा
सनद है लिख दी नहीं ख़रीदे सिले सिलाये क़सम ख़ुदा की
बवक़्ते रुख़सत कहा था उसने उन्हें भी देना दुआयें दिल से
तमाम ज़ुल्मो सितम जिन्होंने हों तुम पे ढाये क़सम ख़ुदा की
न होने तौहीने इश्क़ दी है बला से कितनी हुई मज़म्मत
पता है फिर भी न हम मुहब्बत से बाज़ आये क़सम ख़ुदा की
नहीं गिला है न कोई शिकवा न और 'विश्वास' कोई चाहत
यही बहुत है वो मेरे इतने क़रीब आये क़सम ख़ुदा की
फ़लक से उतरे हसींन रिश्ते बने बनाये क़सम ख़ुदा की
मिले वो जब से हुये नदारद ग़मों के साये क़सम ख़ुदा की
चमक ये चेहरे की आइने में दिखे बदौलत उन्हीं के लिख दो
जो पाये लमहे ख़ुशी के जितने उन्हीं से पाये क़सम ख़ुदा की
चिराग़ जैसे हुये हैं रौशन दिये ज़माने के ज़ख़्म सारे
वहीं से मिसरे ग़ज़ल में अपनी उठा के लाये क़सम ख़ुदा की
बुने हैं अपने लिबास ख़ुद ही अभी हुनर है रवां हमारा
सनद है लिख दी नहीं ख़रीदे सिले सिलाये क़सम ख़ुदा की
बवक़्ते रुख़सत कहा था उसने उन्हें भी देना दुआयें दिल से
तमाम ज़ुल्मो सितम जिन्होंने हों तुम पे ढाये क़सम ख़ुदा की
न होने तौहीने इश्क़ दी है बला से कितनी हुई मज़म्मत
पता है फिर भी न हम मुहब्बत से बाज़ आये क़सम ख़ुदा की
नहीं गिला है न कोई शिकवा न और 'विश्वास' कोई चाहत
यही बहुत है वो मेरे इतने क़रीब आये क़सम ख़ुदा की
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