भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<poem>
गया, जाते जाते ख़ला दे गया
मुसलसल ग़मों की बला दे गया
दुआएँ यक़ीनन करेंगी असर बज़ाहिर हमें हौसला दे गया
सुकूँ ही सुकूँ था जहाँ दूर तक वहाँ पुरअसर पुर'असर ज़लज़ला दे गया
न दें गालियाँ पीठ पीछे उसे
मुक़द्दर जिसे बरमला दे गया
तलातुम से जिसको निकाला था कल
वही आज मौजे-बला दे गया
हमेशा रहेगा दिलों में असर
अजब ग़म, ग़मे-करबला कर्बला दे गया
सुना है 'रक़ीब' इस ज़मीं पर नहीं
ग़ज़ल, आज की मुझे जो दिलजला कला दे गया
</poem>