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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
कीजिये कुछ जलजला आने से पहले।
जख्म ये नासूर बन जाने से पहले।

सोच लेते हैं बखू़बी दूर की हम,
अजनबी मेहमान ठहराने से पहले।

मत बनायें धर्म को हथियार अपना,
हर बहस में सामने आने से पहले।

फिक्ऱ करिये आँच जायेगी कहाँ तक,
मेरे घर में आग लगवाने से पहले।

पेश्तर था सोचना क्या हश्र होगा,
जुल्म हिन्दुस्तान पर ढ़ाने से पहले।

चौक पर इस बार नक्कारे बजेंगे,
दुश्मनों के सर को टंगवाने से पहले।

मुल्क से बढ़कर नहीं ‘विश्वास’ मजहब,
खुद समझिये हमको समझाने से पहले।
</poem>
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