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Kavita Kosh से
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लब पे भूले से मेरा नाम जो आया होगा
दिल की बेताब उमंगों को छिपाया होगा
तुझपे अहसाँ न किया मुझपे बकाया होगा
पिछले जन्मों का कोई क़र्ज़ चुकाया होगा
जब्त होता ही नहीं अपने करम का उनसे
सैकड़ों बार तो अहसान जताया होगा
नाम लेकर न बुज़ुर्गों को पुकारो अपने
जाने किसने तुझे गोदी में खिलाया होगा
ज़ाहिरन उसने नहीं ख़्वाब की वादी में सही
काटकर साँप, सपेरे को बहुत रोया था सोचकर यादकर उसने मुझे कभी दूध पिलाया होगा
अश्क आँखों में उमड़ पड़ते रहे होंगे 'रक़ीब'
दर्दे-दिल जब भी कभी उसको सुनाया होगा
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