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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
उडे़ हैं होश सभी के जनाब क्या होगा।
बरस रही है फलक से शराब क्या होगा।

अलम बुलन्द बग़ावत का ये हुआ कैसे,
किसी को इससे कहो दस्तयाब क्या होगा।

दिखा न कोई बराबर का हुस्न बस्ती में,
जो लाजवाब है उसका जवाब क्या होगा।

रहे न खू़न के रिश्ते यक़ीन के काबिल,
जमाना इससे जियादा ख़राब क्या होगा।

वो बेमिसाल है उसकी मिसाल मत ढूँढ़ो
जो ख़ुद खिताब है उसका खिताब क्या होगा।

हिजाब में भी जो आने को थे नहीं राजी,
वो आ रहे है चले बेनकाब क्या होगा।

अदा मैं कर्ज़ सभी अपने कर चुका ‘विश्वास’,
मगर है फिक्ऱ तुम्हारा हिसाब क्या होगा।
</poem>
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