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Kavita Kosh से
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है ग़ैब की सदा जो सुनाई न दे मुझे
वो सामने है और दिखाई न दे मुझे
सौदा दिलों का होता नहीं ज़र से मेरी जाँ
अब आ जा, और ज़हरे जुदाई न दे मुझे
यूं बेख़बर वजूद के एहसास से हुआ
केवल ज़मीनों ज़र नहीं माँ-बाप भी बटे
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