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है ग़ैब की सदा जो सुनाई न दे मुझे
वो सामने है और दिखाई न दे मुझे
सौदा दिलों का होता नहीं ज़र से मेरी जाँ
ये इस दिल का के कारोबार है में पाई न दे मुझे
इज़हारे इज़हार-ए-इश्क़ करके कहाँ खो गया है तू
अब आ जा, और ज़हरे जुदाई न दे मुझे
रुकता रुकते नहीं है अश्के रवानी का सिलसिलाहैं आँख से आँसू तिरे बग़ैरग़म पीने बर्दाश्त की ख़ुदारा दवाई दुहाई न दे मुझे
यूं बेख़बर वजूद के एहसास से हुआ
केवल ज़मीनों ज़र नहीं माँ-बाप भी बटे
ऐसे ऐसा 'रक़ीब' भाई सेसा, भाई न दे मुझे 
</poem>
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