रूदादे-ग़म सुनाऊँ तो किसको सुनाऊँ मैं ?
इज़हारे इज़हार-ए-ग़म को यूँ तो बहुत तिलमिलाए लब
सहरा में आँसुओं के समन्दर समुन्दर को देखकर
संजीदगी की धुन पे बहुत गुनगुनाए लब
लाली लगा के होंठ पे चमकी लगाई जो
तारों भरे गगन की तरह झिलमिलाए लब
दिल में 'रक़ीब' खोट थी शायद इसीलिए इज़हारे इज़हार-ए-इश्क़ करते हुए थरथराए लब
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