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|रचनाकार=राकेश कुमार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
इतनी जल्दी क्या है प्राणी, तुमको आगे जाने की ?
बात बहुत सी बची हुई है पीछे भी सुलझाने की।
तेरी कोठी भले भरी हो, सोना, चाँदी, हीरा से,
कितने चूल्हे राह निहारें, शाम सुबह इक दाने की।
दान-पुण्य की बात सिखाते बैठ महाशय आसन पर,
मोटी रकम वसूला करते घर से बाहर आने की।
जीवन का जंजाल समेटो कुछ तो सुख का भोग करो,
क्या होगा उस दौलत से जब फुर्सत मिले न खाने की।
अंत सभी का होना निश्चित याद हमेशा रख प्यारे,
काम कभी मत ऐसा करना, नौबत हो पछताने की ।
</poem>
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इतनी जल्दी क्या है प्राणी, तुमको आगे जाने की ?
बात बहुत सी बची हुई है पीछे भी सुलझाने की।
तेरी कोठी भले भरी हो, सोना, चाँदी, हीरा से,
कितने चूल्हे राह निहारें, शाम सुबह इक दाने की।
दान-पुण्य की बात सिखाते बैठ महाशय आसन पर,
मोटी रकम वसूला करते घर से बाहर आने की।
जीवन का जंजाल समेटो कुछ तो सुख का भोग करो,
क्या होगा उस दौलत से जब फुर्सत मिले न खाने की।
अंत सभी का होना निश्चित याद हमेशा रख प्यारे,
काम कभी मत ऐसा करना, नौबत हो पछताने की ।
</poem>