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रचते हुए / सुकेश साहनी
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26 फ़रवरी
बरसो, बहो, गिरो, खिलो, चीखो, ठहरो-
लौह-खण्ड-सा पत्थर
भुरभुरा कर
भुरभुराकर
फिर आ मिलेगा
मिट्टी की धारा से।
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वीरबाला
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