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Kavita Kosh से
अपने कड़वे, मुड़े-तुड़े झूठों से
तुम मुझे गंदगी में कुचल सकते हो
फ़िर भी, धूल की तरह, मैं उठूंगी। उठूँगी ।
क्या मेरी उन्मुक्तता तुम्हें तंग करती है?क्यों घिरे हो तुम अंधकार अन्धकार में?क्योंकि मैं चलती हूंहूँ
जैसे मेरे पास हों
कमरे में तेल उगलते हुए कुएं। कुएँ ।
चांदों और सूरजों की तरह
ज्वार भाटों की निश्चितता के साथ
उम्मीद की तरह फूट पड़ूंगीपड़ूँगीमैं फ़िर फिर भी उठूंगी।
क्या तुम देखना चाहते थे मुझे विखंडितविखण्डित ?मेरा सर झुका हुआ और नज़रें गड़ी हुईं?कंधे आंसुओं आँसुओं की तरह गिरते हुएमेरे भावपूर्ण रुदन से (मुझे) कमज़ोर ?
क्या मेरा गर्वीलापन तुम्हें करता है नाराज़?
क्या तुम उसे कुछ ज़्यादा ही महसूस नहीं करते
क्योंकि मैं हंसती हूंहूँजैसे मेरे आंगन आँगन में सोने की खदानें हों। हों ।
तुम मुझे गोली मार सकते हो अपने शब्दों से
अपनी आंखों आँखों से काट सकते हो तुम मुझे
मार सकते हो तुम मुझे अपनी नफ़रत से
क्या मेरी कामुकता तुम्हें दुखी करती है?
क्या यह एक आश्चर्य है तुम्हारे लिए
कि मैं नाचती हूंहूँजैसे मेरी जांघों के संधिबिंदु सन्धिबिन्दु पर हीरे गड़े हों
इतिहास की शर्मनाक झोपड़ियों से बाहर
मैं उठूंगीउठूँगी
दर्द में गड़े भूतकाल से ऊपर
मैं उठूंगीउठूँगीमैं एक काला समुद्र हूंहूँ, फैलता हुआ और विस्तृतमैं सहती हूं हूँ ज्वार के दौरान उफनना और उमड़ना
आतंक और डर की रातों को पीछे छोड़ते हुए
मैं उठती हूंहूँ
अद्भुत स्पष्ट भोर के साथ
मैं उठती हूंहूँअपने पूर्वजों के दिए उपहार मैं लाती हूं हूँ साथमैं स्वप्न हूं हूँ और हूं हूँ दासों की उम्मीदमैं उठती हूंहूँमैं उठती हूंहूँमैं उठती हूं। हूँ ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद: देवेश पथ सारिया'''
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