{{KKCatGhazal}}
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जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता
जो खो नहीं सकता है वो पा भी हीं सकता
आँसू गिरे तो लोग राज़ जान जायेंगे
अपनों के दिए ज़ख़्म दिखा भी नहीं सकता
जितना भी झूठ बोलना चाहे वो बोल ले
फिर भी वो सही बात छुपा भी नहीं सकता
घनघोर कुहासे में जो लिपटा हुआ हो खुद
सूरज वो सवेरा नया ला भी नहीं सकता
ईमान से बढ़कर के नहीं है कोई दौलत
सोया ज़मीर कोई जगा भी नहीं सकता
मत भूलिए कि चाँद की कितनी है अहमियत
तारों से कोई रात सजा भी नहीं सकता
पूरा हुआ जो वक़्त तो जाना ही पड़ेगा
कोई हकीम, बैद बचा भी नहीं सकता
फूलों की अहमियत को न यूँ दरकिनार कर
मुरझा गये तो उनको खिला भी नहीं सकता
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