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सच्चाई की सिर्फ़ वकालत करता हूँ
ख़ुद से भी बेख़ौफ़ बग़ावत करता हूँ
यारों से भी लड़ना मुझको आता है
दुश्मन पर भी मगर इनायत करता हूँ
 
जो मासूमों की हत्यायें करती हो
तन्हा, उस लश्कर की ख़िलाफत करता हूँ
 
जिसके शासन में जनता भूखी सोती
उस शासक की खूब मलामत करता हूँ
 
दुनियादारी यूँ मुझको भी आती है
पर न कभी अपनों से शिकायत करता हूँ
 
ईश्वर की पूजा से बेशक दूर रहूँ
मानवता की मगर इबादत करता हूँ
 
नफ़रत से रखता हूँ ख़ुद को अलग मगर
कुदरत की हर शै से मुहब्बत करता हूँ
</poem>
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