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नफ़रती इंसान से नाता नहीं
घृणा फैलाना मुझे आता नहीं
मान - मर्यादा जो धोकर पी चुका
बेशरम इंसान शरमाता नहीं
 
कर चुका ईमान का सौदा हो जो
बोलने में झूठ सकुचाता नहीं
 
दिल नहीं सीने में हो जिस शख़्स के
दूसरे का दुःख समझ पाता नहीं
 
मात खा जाता है बेशक शेर भी
पर किसी से ख़ौफ़ वो खाता नहीं
 
नाम जो तकलीफ़ देता है मुझे
अब उसे होंठों पे मैं लाता नहीं
 
दर्द मिट जाता है बेशक चोट का
दाग़ लेकिन चोट का जाता नहीं
</poem>
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