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सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है
फिर भी यारो सच को सच तो कहना होता है
गीली लकड़ी जैसी हालत हो जाती है फिर
जलने से पहले कुछ देर सुलगना होता है
इधर अँधेरों से दीये को लड़ना भी पड़ता
उधर हवाओं से भी उसको बचना होता है
 
इस अदबी महफ़िल में कैसे खुलकर बोला जाय
अपने ग़म को एक तरफ़ रख हँसना होता है
 
इस दरिया में केवल पानी है कहना क्या ठीक ?
यह मत भूलो , आग दबाकर रखना होता है
 
हो करके बेफ़िक्र चलोगे धोखा खाओगे
फुलवारी में भी काँटों से बचना होता है
 
कल का सूरज डूब गया था यह भी बात सही
मगर हर सुबह , हर सूरज को उगना होता है
</poem>
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