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खाये पिये अघाये लोग / डी. एम. मिश्र
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4 मार्च
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<poem>
खाये पिये अघाये लोग
हैं बनठन कर आये लोग
पाचन शक्ति बढ़ाने को
धरम का चूरन लाये लोग
देश में कहाँ ग़रीबी है
मुद्दा यही उठाये लोग
हम तो छप्पर वाले, वो
रेत के महल उठाये लोग
गर्मी हमें भी लगती है
समझें नहीं जुड़ाये लोग
ताक़तवर सब उधर खड़े
इधर तो सिर्फ़ सताये लोग
साधू बनकर घूम रहे
अपना जुर्म छुपाये लोग
उनमें कहाँ जमीर बचा
वो हैं नज़र झुकाये लोग
सुबह न हो कल क्या मालूम
आस हैं मगर लगाये लोग
</poem>
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