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|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=मनोज पटेल
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<poem>
तुम्हारी वजह से खरबूजे की फाँक - सा हो जाता है हर एक दिन
मिट्टी की मीठी ख़ुशबू से महकता हुआ ।
तुम्हारी वजह से सारे फल बढ़ आते हैं मेरी तरफ़
जैसे कि धूप हूँ मैं ।
तुम्हारा शुक्रिया कि मैं ज़िन्दा रहा उम्मीद के शहद पर ।

तुम्हारी वजह से ही धड़कता है मेरा दिल
तुम्हारी वजह से, मेरी सबसे तन्हा रातें भी ।
मुस्कुराती हैं तुम्हारी दीवार पर लगी
अनतोलिया की उस तस्वीर की तरह ।

अगर कहीं मेरा सफ़र ख़त्म हो अपने शहर पहुँचने के पहले ही
तुम्हारी वजह से, मैं सो चुका हूँ
गुलाब की एक वाटिका में ।

तुम्हारी वजह से मैंने दाख़िल नहीं होने दिया मौत को,
जो मुलायम कपड़ों में लिपटी
गाना गाती दस्तक दे रही थी मेरे दरवाज़े पर
बुलाते हुए मुझे चिर शान्ति की ओर ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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