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18 मार्च {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=तृष्णा बसाक
|अनुवादक=लिपिका साहा
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<poem>
मैं इस बसन्त की कोई नहीं गिरीधारी
यदि पूछोगे पिछले जन्मों के बारे में
तब मैं कदम्ब के फूल की भाँति
चूर-चूर होकर घुल जाना चाहती हूँ हर जनम में
जानती हूँ मैं, कदम्ब के इन कणों में भी बजती है बाँसुरी
वही सुर ढूँढ़ लेगा मुझे
तब तुम सब मुझे जातिस्मर कहोगे ।
मन्दिर की सीढ़ियों से जिन लोगों ने
दुत्कार कर भगा दिया था मुझे
वे ही बनाएँगे मेरी मूरत
मेरी पथरीली आँखे लेकिन तलाशती रहेंगी सिर्फ़ तुम्हें ।
'''मूल बांग्ला से अनुवाद : लिपिका साहा'''
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