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कई मुश्किलें हैं, बढ़ी बेबसी है
कोई दिल्लगी है कि ये ज़िन्दगी है
गया तो गया वो, यही सोचता था
मगर दिल में क्यों हूक सी उठ रही है
 
गिले और शिकवे भुला दीजिये सब
चले आइए फ़ैसले की घड़ी है
 
अभी तो तुम्हें आसमां भी है छूना
अभी किसलिए तुमको जल्दी पड़ी है
 
रहा होगा इतिहास उसका भी कोई
मगर आज तो एक सूखी नदी है
 
यही तो बताना तुम्हें चाहता हूँ
पुरानी नज़र , दृष्टि लेकिन नयी है
 
मेरी जिंदगी का ये हासिल है यारो
मज़ा हो गया ख़त्म मस्ती वही है।
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