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|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
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|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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<poem>
ख़ुश्क पत्ते हों तो हर शाख़ गिरा देती है
हो बुरा वक़्त तो दुनिया भी भुला देती है

ए खुदा, जब भी इनायत तेरी हो जाती है
तपते सहराओं की भी प्यास बुझा देती है

जिंदगी क्या है हमने ये इस से पूछ लिया
ख़ाक मुठ्ठी की,हवाओं में उड़ा देती है

वो ज़माने से लगी हो या मुक़द्दर से लगी
चोट कैसी भी हो इंसा को रुला देती है

मुझको इनाम की चाहत नहीं दुआ दीजे
इक दुआ उम्र भर का साथ निभा देती है।
</poem>
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