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{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अब हुक्मरानों का
वश नहीं रहा
प्रजा को उनके हाल पर
छोड़ कर ऐलान कर दिया
कि कोरोना के साथ
जीने की आदत डालो
जीने की आदत ?
उपहास
एक अदद
जीवन का उपहास
जो पलायन के लिए
मजबूर है
भूखे पेट ,नंगे पांव
45 डिग्री तापमान में
झुलसता, मरता
उसके लिए यह
उपहास नहीं तो और
क्या है मेरे आका
तुम
जो सुरक्षा चक्रों में बैठे हो
और यह भी जानते होगे
तुमने मौत के दरवाज़े
खोल दिए हैं यह कहकर
</poem>
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|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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अब हुक्मरानों का
वश नहीं रहा
प्रजा को उनके हाल पर
छोड़ कर ऐलान कर दिया
कि कोरोना के साथ
जीने की आदत डालो
जीने की आदत ?
उपहास
एक अदद
जीवन का उपहास
जो पलायन के लिए
मजबूर है
भूखे पेट ,नंगे पांव
45 डिग्री तापमान में
झुलसता, मरता
उसके लिए यह
उपहास नहीं तो और
क्या है मेरे आका
तुम
जो सुरक्षा चक्रों में बैठे हो
और यह भी जानते होगे
तुमने मौत के दरवाज़े
खोल दिए हैं यह कहकर
</poem>