भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समझ / कुंदन सिद्धार्थ

1,151 bytes added, 30 मार्च
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुंदन सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वे मित्र बनकर आये
ताकि शत्रुता कर सकें

वे अपने बनकर आये
ताकि गैर होने का एहसास करा सकें

शत्रु, शत्रु की तरह आते
पहचान लेता
मित्र बनकर आये
धोखा खाया

गैर, गैर की तरह आते
पहचान लेता
अपने बनकर आये
धोखा खाया

शत्रुओं ने नहीं
झूठे मित्रो ने मित्रता को
ज्यादा नुक़सान पहुँचाया

गैरों ने नहीं
झूठे अपनों ने अपनेपन को
ज्यादा नुक़सान पहुँचाया

अफसोस की बात यह रही
कि यह समझ बड़ी देर से आयी
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,192
edits