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{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पराज यादव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
बिछुड़े हुये लोगों को सीने में बसा रखना
अपना तो मुक़द्दर है आँखों को बुझा रखना
सोचा नहीं करते हैं बीती हुई बातों को
बहते हुये अश्कों को हिम्मत से दबा रखना
सोने-सी कोई सूरत उभरेगी चटानों पर
सूरज से दुपहरी भर इक रब्त बना रखना
शायद यहीं मिल जाये वह शख़्स जो बिछुड़ा है
सुनसान से मंज़र को बातों में लगा रखना
काँधों पर उठा रखना दुनिया के हर इक ग़म को
और ख़ुद को ज़माने की फ़ितरत से जुदा रखना
रोयें तो वही आँखें ढूँढ़ें तो वही चेहरा
आदत-सी कोई जैसे दिन-रात बना रखना
इक आस तो रहती है ये ज़िन्दगी रहने तक
इन बेवफ़ा लोगों की फेहरिस्त बना रखना
</poem>
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|संग्रह=
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बिछुड़े हुये लोगों को सीने में बसा रखना
अपना तो मुक़द्दर है आँखों को बुझा रखना
सोचा नहीं करते हैं बीती हुई बातों को
बहते हुये अश्कों को हिम्मत से दबा रखना
सोने-सी कोई सूरत उभरेगी चटानों पर
सूरज से दुपहरी भर इक रब्त बना रखना
शायद यहीं मिल जाये वह शख़्स जो बिछुड़ा है
सुनसान से मंज़र को बातों में लगा रखना
काँधों पर उठा रखना दुनिया के हर इक ग़म को
और ख़ुद को ज़माने की फ़ितरत से जुदा रखना
रोयें तो वही आँखें ढूँढ़ें तो वही चेहरा
आदत-सी कोई जैसे दिन-रात बना रखना
इक आस तो रहती है ये ज़िन्दगी रहने तक
इन बेवफ़ा लोगों की फेहरिस्त बना रखना
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