भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यवान सत्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यवान सत्य
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मेरे महबूब या तो अपना बना ले मुझको
वरना तू कर दे ज़माने के हवाले मुझको

अब उसी की ही ख़ुशी के लिए चलना है मुझे
बैठने देंगे नहीं पाँव के छाले मुझको

आखिरी वक़्त तलक रब्त निभाना है मुझे
यूँ जुबां पर ही लगाने पड़े ताले मुझको

तीरगी साथ मेरे शब ओ सहर रहती है
मार डालेंगे किसी दिन ये उजाले मुझको

ठोकरें खा रहा हूँ रोज़ तेरे ही दर की
वक्त पर अब नहीं मिलते हैं निवाले मुझको

होश मुझको नहीं है हाथ पकड़ ले साकी
इससे पहले कि कोई और संभाले मुझको

रात दिन उम्र इबादत में जहाँ गुजरी है
कोई उस दर से न जिल्लत से निकाले मुझको
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,192
edits