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<poem>
तमन्ना है चमन की हम तरक्क़ी औ ख़ुशी देखें
मगर सय्याद कहता है कि अपनी ज़िन्दगी देखें

उधर हवसी समंदर हैं इधर प्यासा है इक सहरा
हवस देखें किसी की या किसी की तिश्नगी देखें

बँटा इंसान जब से है यहाँ मज़हब के खाँचों में
बताएँ फिर कहाँ पर आज कोई आदमी देखें

जिन्हें हसरत यहाँ पर है गुलों को तोड़ लेने की
जरूरत है कि पहले वे कोई खिलती कली देखें

अदावत है भरी मन में जबां पर है शकर लेकिन
अब उनका जह्र देखें या लबों की चाशनी देखें

उजाला बाँटता है शम्स भी मुँह देखकर यारो
मिली अब तक नहीं कितनों को लेकिन रोशनी देखें

दिखाए रहनुमा ने जो सुनहरे ख़्वाब आँखों को
अगर हैं मुतमइन उन से तो आओ फिर वही देखें
</poem>
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