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<poem>
इस दौर के बशर की कोई हैसियत न पूछ
कुछ भी ले पूछ तू कभी इंसानियत न पूछ

उड़ते परिंदों का न कोई गाँव शह्र है
गम का ठिकाना पूछ मगर शहरियत न पूछ

परछाई से भी धूप में मिलता सकून है
अपनी ख़बर तो दे तू भले खैरियत न पूछ

जिसमें वफ़ा ईमान है दौरे जदीद में
उसकी अना को देख मगर शख्सियत न पूछ

जिस पर चढ़ा हो रंग सियासी फितूर का
किरदार ऐसे की कोई तू खासियत न पूछ

मुझको पता है हिज्र में कैसे है कट रही
तू ज़िन्दगी की आ के कभी कैफियत न पूछ

सच में अगर है इश्क़ तो हुजरे में आ मेरे
दरियादिली तू देख मेरी मिल्कियत न पूछ
</poem>
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