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Kavita Kosh से
कृतज्ञता का बोझ बन टंगा न रहूँ
किसी को याद आ जाउं जाऊं फिर भी तो इस तरह तो आउंआऊं
कि किसी के दुखते हुए सिर पर कभी हाथ रखा था
कि किसी के साथ घंटों तब बिताए थे