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<poem>
मुझे इस गड्‍ढे में फेंके जाने के समय से अब तक
पृथ्वी दस बार सूरज के चक्कर लगा चुकी है
अगर पृथ्वी से पूछो, वह कहेगी
’वक़्त का इतना बारीक मीजान ठीक नहीं’
अगर तुम मुझसे पूछो, मैं कहूँगा,
’मेरी ज़िन्दगी के दस साल !’
जिस दिन मुझे क़ैद किया गया
मेरे पास एक छोटी-सी पैंसिल थी
जिसे मैंने एक हफ़्ते में घिस डाला ।
अगर तुम पैंसिल से पूछो, वह कहेगी,
’मेरी समूची ज़िन्दगी !’
अगर तुम मुझसे पूछो, मैं कहूँगा,
’तो क्या ? सिर्फ़ एक हफ़्ता !’
 
मेरे इस गड्‍ढे में आने के दिन
क़त्ल की सज़ा भुगतता हुआ उस्मान
साढ़े सात साल ब
''' अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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