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<poem>
करें हम एक दूजे को बराबर प्यार नामुमकिन
किसी मानक कसौटी पर खरा इज़हार नामुमकिन

हमारे माथ भी भंवरी तुम्हारे माथ भी भंवरी
अगर हम प्यार में डूबे ,तो पाना पार नामुमकिन

उठे ना फ़ोन या न मिल सके रिप्लाई मैसेज का
कि इतनी बात पर रूठें करें तकरार नामुमकिन

तुम्हारे शह्र आने की हमें तो पड़ गयी आदत
कि मिलने आओ सबकुछ छोड़कर हरबार नामुमकिन

अगर हम ठान लें कुछ भी समय को झुकना पड़ता है
मगर हर बार क़िस्मत से करें इनकार नामुमकिन

कोई जब साथ हो दुनिया भले गतिमान लगती है
किसी के जाने से रुक जाये यह संसार नामुमकिन

हरी हो भाव की धरती कसावट व्याकरण में हो
ग़ज़ल के हुस्न से कर दे कोई इंकार नामुमकिन
</poem>
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