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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
हम बच्चे फिर से मिले-जुले,
स्कूल खुले, स्कूल खुले ।
कक्षाएँ फिर से शुरू हुईं,
बस्तों से कॉपी निकल गई,
मुझको भी थोड़ा-सा पढ़ लो,
पुस्तक की तबियत मचल गई ।
अब व्यर्थ नहीं बातें करनी,
हर शब्द रहेंगे नपे-तुले,
स्कूल खुले, स्कूल खुले ।
अब खेल-कूद की बात छोड़,
मेहनत से पाठ पढ़ेंगे हम,
हम नई हवा के नए फूल,
लेकर नवगन्ध बढ़ेंगे हम ।
मन अपना स्वच्छ बनाएँगे,
कपड़े पहनेंगे साफ़ - धुले,
स्कूल खुले, स्कूल खुले ।
</poem>
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|रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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हम बच्चे फिर से मिले-जुले,
स्कूल खुले, स्कूल खुले ।
कक्षाएँ फिर से शुरू हुईं,
बस्तों से कॉपी निकल गई,
मुझको भी थोड़ा-सा पढ़ लो,
पुस्तक की तबियत मचल गई ।
अब व्यर्थ नहीं बातें करनी,
हर शब्द रहेंगे नपे-तुले,
स्कूल खुले, स्कूल खुले ।
अब खेल-कूद की बात छोड़,
मेहनत से पाठ पढ़ेंगे हम,
हम नई हवा के नए फूल,
लेकर नवगन्ध बढ़ेंगे हम ।
मन अपना स्वच्छ बनाएँगे,
कपड़े पहनेंगे साफ़ - धुले,
स्कूल खुले, स्कूल खुले ।
</poem>