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|रचनाकार=मधु 'मधुमन'
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|संग्रह=ख़्वाब सी ये ज़िंदगी / मधु 'मधुमन'
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<poem>
वो रोज़ करते हैं दावा जो रहनुमाई का
फ़क़त दिखावा है ये उनका पारसाई का

मिले हैं आपको धोखे तो इसमें क्या हैरत
यही सिला है ज़माने में अब भलाई का

हर एक शख़्स से मत बाँटिएगा ग़म अपने
यहाँ पहाड़ बनाते हैं लोग राई का

किसी के दर्द को पढ़ना ही आ सका न अगर
तो फ़ायदा ही हुआ क्या तेरी पढ़ाई का

न भूलिए कि यहाँ ख़र्च जो किया पल-पल
उसे हिसाब भी देना है पाई-पाई का

न दिन को चैन है अब और न नींद रातों को
अजब ये शौक़ लगा है ग़ज़ल सराई का

तमाम उम्र कफ़स में ही कट गई ‘मधुमन‘
है इंतज़ार परिंदे को अब रिहाई का
</poem>
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