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{{KKRachna
|रचनाकार=मधु 'मधुमन'
|अनुवादक=
|संग्रह=उजालों का सफ़र / मधु 'मधुमन'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
वो रात हिज्र की हो या वह रात हो विसाल की
गुज़रती है दिलों पर कैफ़ियत बहुत कमाल की
तुम्हारे साथ चाँद को निहारते कटी थी जो
अभी तलक है ज़ेह्न में वह शब गुज़िश्ता साल की
यहाँ रहूँ ,वहाँ रहूँ ,कहीं भी मैं रहूँ भले
हमेशा साथ रहती है महक तेरे ख़याल की
उसे कहाँ गरज़ किसी के दिल पर होगा क्या असर
उसे तो जी निकालनी है खाल सिर्फ़ बाल की
किसी बहुत अज़ीज़ शय को खो दिया था एक बार
फिर उसके बाद ख़ुद की भी नहीं कभी सँभाल की
मैं थक गई जवाब देते-देते तुझको ज़िंदगी
मगर रुकी नहीं कभी झड़ी तेरे सवाल की
उरूज के भी दिन सदा नहीं रहे अगर तो फिर
गुज़र ही जाएगी यूँ ही ये रात भी ज़वाल की
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=उजालों का सफ़र / मधु 'मधुमन'
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<poem>
वो रात हिज्र की हो या वह रात हो विसाल की
गुज़रती है दिलों पर कैफ़ियत बहुत कमाल की
तुम्हारे साथ चाँद को निहारते कटी थी जो
अभी तलक है ज़ेह्न में वह शब गुज़िश्ता साल की
यहाँ रहूँ ,वहाँ रहूँ ,कहीं भी मैं रहूँ भले
हमेशा साथ रहती है महक तेरे ख़याल की
उसे कहाँ गरज़ किसी के दिल पर होगा क्या असर
उसे तो जी निकालनी है खाल सिर्फ़ बाल की
किसी बहुत अज़ीज़ शय को खो दिया था एक बार
फिर उसके बाद ख़ुद की भी नहीं कभी सँभाल की
मैं थक गई जवाब देते-देते तुझको ज़िंदगी
मगर रुकी नहीं कभी झड़ी तेरे सवाल की
उरूज के भी दिन सदा नहीं रहे अगर तो फिर
गुज़र ही जाएगी यूँ ही ये रात भी ज़वाल की
</poem>