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गुज़र रहे हैं ज़िन्दगी के साल / निलूफ़र शिख़ली / अनिल जनविजय
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,
29 अप्रैल
<poem>
किसी तरह से बीत रहा यह काल
हैं
गुज़र रहे हैं मेरी ज़िन्दगी के साल
दुख-सुख जीवन के सहन करते हम
अनिल जनविजय
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