Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
कहने को औरत आधी आबादी है
सत्ता में क्या आधी हिस्सेदारी है?
इस दुनिया की ये कड़वी सच्चाई है
पुरुष यहाँ का मालिक, औरत दासी है
 
औरत के हिस्से में बस इतना आया
आँसू पीती रहती है, ग़म खाती है
 
पैदा होने से लेकर के मरने तक
कठपुतली है , नाच नचायी जाती है
 
अबला, कुलटा क्या - क्या नाम मिले उसको
काग़ज़ पर बेशक देवी कहलाती है
 
औरत मजदूरन से ले सहबाइन तक
दोयम दर्ज़े पर ही रक्खी जाती है
 
मजबूरी का नाम दूसरा औरत है
जीवन भर रहती बनकर परछाई है
 
सहरा में भटके जैसे प्यासी हिरनी
तन्हा रोती, घबराती , चिल्लाती है
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits