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वो हसीं है बहुत सोचिए ही नहीं
उस नज़र से उसे देखिए ही नहीं
देखने में लगे चाँद मासूम है
पर , हक़ीक़त है क्या पूछिए ही नहीं
 
फ़िक्र जो हो हवा में उड़ा दीजिये
बोझ दिल पर कोई लादिए ही नहीं
 
बेवजह की बहस से है क्या फ़ायदा
जो ग़लत है उसे मानिए ही नहीं
 
बात में ज्योतिषी की न आया करें
होगा कल क्या इसे जानिए ही नहीं
 
अच्छा होगा कि सह लें परेशानियाँ
हर किसी से मदद माँगिए ही नहीं
 
जिसको पाने से इज़्ज़त पे बट्टा लगे
ऐसी शोहरत मुझे चाहिए ही नहीं
</poem>
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