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ऐसी चली विकास की आँधी न पूछिए
दिल थाम के बैठा हूँ तबाही न पूछिए
आरा लिए तो कोई कुल्हाड़ा लिए खड़ा
कितनी हुई पेड़ों की कटाई न पूछिए
 
बिल्कुल नहीं सरकार को पर्यावरण की फ़िक्र
आयेगी जो इस बार सुनामी न पूछिए
 
पर्यावरण ख़राब तो सब कुछ ख़राब है
दम घुट रहा लोगों का, बिमारी न पूछिए
 
शासन का कोई डर नहीं सब बेलगाम हैं
कैसे जला रहे हैं पराली न पूछिए
 
इतना धुआँ है दूर तलक दिख नहीं रहा
मर जाइए मौसम की ख़राबी न पूछिए
 
पैसे हो कमाना तो ग़लत काम कीजिये
होती हराम की जो कमाई न पूछिए
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