भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इतना बड़ा क़द आपका तो डर तो लगेगा
कोई नहीं है आप सा तो डर तो लगेगा
चींटी की क्या औकात जानते हैं आप भी
गजराज सामने खड़ा तो डर तो लगेगा
 
बाघों का ये स्वभाव है, इंसान का थोड़ी
हर बात पर गुर्रा रहा तो डर तो लगेगा
 
सारे शहर में पोस्टर लगे हैं आपके
हौवा खड़ा किया गया तो डर तो लगेगा
 
महफ़िल में बहुत लोग हैं पर आपकी तरह
दिखता नहीं है दूसरा तो डर तो लगेगा
 
मालाएँ सिर्फ़ दिख रहीं मूरत के आसपास
चेहरा नहीं है दिख रहा तो डर तो लगेगा
 
साँसों को थामकर यहाँ बैठे हुए हैं लोग
हर कोई है डरा हुआ तो डर तो लगेगा
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits