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इतना भी कम मत आँको वो नन्ही सी चिन्गारी है
मौका पा जाये तो पूरी बस्ती पर वो भारी है
जनता सब कुछ समझ रही है राजा अत्याचारी है
तरह -तरह के टैक्स लगाने की फिर से तैयारी है
 
कल की बातें आज करेंगे उससे क्या हासिल होगा
कल का जोगीराम आज का सूबे का अधिकारी है
 
सोने की चिड़िया पहले कहलाता था अपना भारत
आज पता है क्या हालत है जन जन की बेकारी है
 
शब्दों का तुक ताल बिठाना सीख लिया बस इतना ही
कवि का जब आचरण नहीं तो भांट है वो दरबारी है
 
सच को ही ठुकरा देती है चमक - दमक के चकमे में
साधो, तुम भी देख रहे हो दुनिया कितनी न्यारी है
 
औरत का दारुण दुःख समझो घर में भूँजी भांग नहीं
उस औरत की , उस पीड़ा को लिखती ग़ज़ल हमारी है
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