भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमर पंकज |अनुवादक= |संग्रह=लिक्खा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमर पंकज
|अनुवादक=
|संग्रह=लिक्खा मैंने भोगा सच / अमर पंकज
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुश्किल था पूरा सच लिखना तो आधा हर बार लिखा,
जहर पिया मैंने नित लेकिन सुंदर है संसार लिखा।
शीश उठाकर जी ले निर्बल है इतना आसान नहीं,
मैंने भी तो इसीलिए है जीत बताकर हार लिखा।
बाढ़ नदी की लेकर आयी मुझको तो इस पार मगर,
मक्कारी लोगों की मैंने देखी जो उस पार लिखा।
सैर कराए नंदन वन की सुरभि पवन लेकर आये,
साथ मेरे ही रह तू पाहुँन, ख़त में ये सौ बार लिखा।
संत्रास, घुटन, अपमान, व्यथा, दर्द ‘अमर’ की गाथा है,
लिक्खा मैंने भोगा सच तू कहना मत बेकार लिखा।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अमर पंकज
|अनुवादक=
|संग्रह=लिक्खा मैंने भोगा सच / अमर पंकज
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुश्किल था पूरा सच लिखना तो आधा हर बार लिखा,
जहर पिया मैंने नित लेकिन सुंदर है संसार लिखा।
शीश उठाकर जी ले निर्बल है इतना आसान नहीं,
मैंने भी तो इसीलिए है जीत बताकर हार लिखा।
बाढ़ नदी की लेकर आयी मुझको तो इस पार मगर,
मक्कारी लोगों की मैंने देखी जो उस पार लिखा।
सैर कराए नंदन वन की सुरभि पवन लेकर आये,
साथ मेरे ही रह तू पाहुँन, ख़त में ये सौ बार लिखा।
संत्रास, घुटन, अपमान, व्यथा, दर्द ‘अमर’ की गाथा है,
लिक्खा मैंने भोगा सच तू कहना मत बेकार लिखा।
</poem>