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जो है मेरा मिल जाना है / अमर पंकज

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|संग्रह=हादसों का सफ़र ज़िंदगी / अमर पंकज
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<poem>
जो है मेरा मिल जाना है,
पास उसे मुझ तक आना है।

तय है सबका दाना पानी,
चलकर सबको बस लाना है।

दीदार कभी तो होगा ही,
रोज तेरे दर पर आना है।

जीवन संध्या की वेला में,
काहे को अब पछताना है।

रूखी सूखी ख़ाकर मुझको,
गीत ख़ुशी के ही गाना है।

घाव अगर हैं टीसेंगे ही,
दुनिया को क्यों दिखलाना है।

कोई उसको तो समझाओ,
कह्र ‘अमर’ पर क्यों ढ़ाना है।
</poem>
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