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<poem>
मन हुआ मधुमास,बोलो क्या करें!
हर तरफ़ उल्लास,बोलो क्या करें!

बन के पुरवाई बयारों ने दिया ऐसा सिला,
मुट्ठी भर की धूप से भी मेघ करता है गिला,
फाग का अहसास लेकर क्या करें !
मन हुआ मधुमास,बोलो क्या करें !

घेर कर जुल्मी फुहारों ने भिगोया तन मेरा,
गुफ्त़गू करके निगाहों ने डिगाया मन मेरा,
रच गया परिहास, बोलो क्या करें!
मन हुआ मधुमास,बोलो क्या करें!

भर दिया है रंग ऐसा तितलियों ने बाग़ में,
हर कली करने लगी है मन भ्रमित इस फाग में,
पुष्प का शृंगार लेकर क्या करें !
मन हुआ मधुमास, बोलो क्या करें!

ऐसी बनाई रीत कि अब प्यार भी छलने लगा,
हर अधर का मान रखता गीत भी जलने लगा,
मौसमी सौगात लेकर क्या करें !
मन हुआ मधुमास, बोलो क्या करें!
</poem>
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