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Kavita Kosh से
जुस्तजू बोसा-ए-दिलदार नहीं थी, कि जो है
ज़िन्दगी हुस्न परस्तार नहीं थी, कि जो है
उसके आने से 'रक़ीब' आई है जीवन में खुशीख़ुशी
हक़ में दुनिया मेरे गुलज़ार नहीं थी, कि जो है
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