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{{KKRachna
|रचनाकार=भव्य भसीन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब साँझ ढले पिय आ जाना,
ये रात बिरहा की नहीं कटती।
देखूँगी दर पर दिख जाना,
ये प्यास दरस की नहीं मिटती।
ललित छवि अरु, कुंतल कारे,
प्राणपति मेरे कितने न्यारे।
निशिदिन हिय में वास करो तुम,
इन नैनन के अञ्जन प्यारे।
जब रोती पुकारूँ सुन आना,
ये अगन हृदय की नहीं मिटती।
जब साँझ ...
अगणित जन्म की व्यथा कहानी,
प्रियतम क्या तुमने नहीं जानी।
क्या कहूँ कैसी अधम हूँ प्यारे,
जो दर्शन अधिकारी न जानी।
जब प्राण मैं देऊँ ले जाना,
मेरी तुम बिन पीड़ा नहीं घटती।
जब शाम
</poem>
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|संग्रह=
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जब साँझ ढले पिय आ जाना,
ये रात बिरहा की नहीं कटती।
देखूँगी दर पर दिख जाना,
ये प्यास दरस की नहीं मिटती।
ललित छवि अरु, कुंतल कारे,
प्राणपति मेरे कितने न्यारे।
निशिदिन हिय में वास करो तुम,
इन नैनन के अञ्जन प्यारे।
जब रोती पुकारूँ सुन आना,
ये अगन हृदय की नहीं मिटती।
जब साँझ ...
अगणित जन्म की व्यथा कहानी,
प्रियतम क्या तुमने नहीं जानी।
क्या कहूँ कैसी अधम हूँ प्यारे,
जो दर्शन अधिकारी न जानी।
जब प्राण मैं देऊँ ले जाना,
मेरी तुम बिन पीड़ा नहीं घटती।
जब शाम
</poem>