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शमशान / भव्य भसीन

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<poem>
मैं शमशान हूँ।
निश दिन यहाँ कामनाएँ मृत पाई जाती हैं।
मैं जीवन धारण नहीं करता।
मेरे इष्ट शिव यहाँ विराजते हैं।
वे ही मृत्यु हैं।
मुझमें रहते हैं तो संसार नहीं रहेगा।
यहाँ इच्छाएँ मृत हैं।
मेरे अंतर में चिता सजाई जाती है।
उसमें जलते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।
उनकी राख से मैं शिव का स्वागत करता हूँ।
इस राख की सुगंध चन्दन-सी है।
इसे जिसने लपेटा उसी ने इसका सुख पाया है।
उनकी राख लपेट मेरे इष्ट यहाँ नृत्य करते हैं
और छा जाता है, आह्लाद।
हाँ, शमशान में आह्लाद।
यहाँ रोता कौन है?
माया।
उस रुदन पर मेरे इष्ट नृत्य करते हैं।
ये ही उनका प्रिय संगीत है।
मैं शमशान हूँ।
पर मुझे गंगाजल से पवित्र करने की आवश्यकता नहीं है।
मैं पवित्र हूँ राम नाम से,
क्योंकि केवल राम नाम ही सत्य है।
राम नाम ही सत्य है।
</poem>
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